Saturday, April 9, 2016

अजब नूर से पुर-नूर हो तुम

वैसे तो बस सादा-रू इंसान ज़रूर हो तुम,
लेकिन एक अजब नूर से पुर-नूर हो तुम |

इंसानों सी नफ़्स-ए-अम्मारा है तुममे,
फिर भी हर फरेब से कितनी दूर हो तुम |

फरिश्तों सी फितरत और मासूमियत,
फिर भी इंसानों सी मजबूर हो तुम |

सब्र-ए-अय्युब जैसे हो समाया तुममें,
लगता है पसंदे- अस-सबूर हो तुम |

बस सुरूर-ए-ग़ज़ल से ही मदहोश कर दे,
ऐसे फ़न्न-ए-सुख़न से भरपूर हो तुम |

ऐसी तलकिनी शख्सियत का तिलिस्म ही तो है,
कि अब तो कलम-ए-शाहिद का गुरूर हो तुम |

© 3-April-2016, शाहिद खान
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* सादा-रू - Simple
* पुर-नूर - Illuminated
* नफ़्स-ए-अम्मारा - Obstinate nature of desire
* पसंदे- अस-सबूर - Favorite of The Most Patient (Attribute of Almighty)
* फ़न्न-ए-सुख़न - Art/Talent of poetry
* तलकिनी शख्सियत - Inspirational personality